अनहोनी को रोकेगा कौन?
दुर्भाग्य का अभी समय चल रहा है, इंसान डर के साये में जी रहा है, इस डर को अब भगाए कौन? प्रकृति के आगे सब हैं मौन। प्रकृति को रोष मानव ने ही दिलाया, जो स्वार्थ में अंधा खुद को है बनाया, कौन कर्म करे और फल भुगते कौन? इस अनहोनी को अब रोके कौन?